Kavita Jha

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सतरंगी जीवन #कहानीकार प्रतियोगिता लेखनी कहानी -16-Aug-2023

भाग-23
पूजा मोनिका जी को अपने लिखे गीत और कविताएं सुनाया करती जिसे मोनिका जी भाव विभोर होकर सुना करती। 
पूजा तुम्हारी कविताएं कुछ अलग प्रकार की होती हैं जिन्हें सुनने का आनंद ही कुछ और है। किस तरह से लिखती हो तुम क्या इसे लिखने का कोई विशेष तरीका है। यह साधारण कविताएं तो नहीं लगती।
तब पूजा ने बताया था यह छंदमयी  रचनाएं हैं जिसमें मात्राओं और कल संयोजन के साथ साथ गणों का विशेष ध्यान रखना पड़ता है और छंद से उनका परिचय करवाया था। 
यह तो बहुत ही रुचिकर है मैं तो कुछ भी लिख देती  हूं जो भी भाव मन में आते हैं उन्हें बस लिखकर संतुष्टि मिलती है अभी तक कभी इन सब बातों का ध्यान ही नहीं किया आप जिस तरह से बता रही हैं यह बहुत ही रुचिकर  लगने वाला लग रहा है अब मैं इसे हर हाल में सीखना चाहूंगी चाहे इसके लिए मुझे कितने भी पैसे खर्च करने पड़े।”

" नहीं दीदी इसके लिए आपको एक पैसा भी खर्च नहीं करना पड़ेगा हम निशुल्क छंद ज्ञान देते हैं। मैंने भी अभी तक जितना भी सीखा है वह निशुल्क ही सीखा है एक भी पैसा खर्च नहीं हुआ है और अभी भी जो सीख रही हूं वह भी निशुल्क ही है एक भी पैसा नहीं मिल रहा है दीदी।"
 यह कहते हुए उसको हंँसी आ गई थी।
 पूजा के चेहरे पर सात रंगों के अतिरिक्त एक आठवां रंग भी दिखने लगा जो हताशा और उदासी का था क्योंकि कभी-कभी उसे इस बात का दुख होता था कि उसने अपनी स्कूल की नौकरी छोड़ दी थी परिवार और बच्चों के कारण। फिर पिछले दस सालों से जो ट्यूशन पढ़ाया करती थी अपने  घर पर वह भी छूट गई। जब से  देश की इस महामारी करोना काल की शुरुआत में लॉक डॉउन हुआ। उसकी सास और जेठ जेठानी सबने गली के बच्चों का आना बंद करवा दिया।
 "तुम्हारे ट्युशन के इन बच्चों और उनको छोड़ने लेने के लिए आने वाले उनके माता-पिता भाई-बहन के कारण हम कोई रिस्क नहीं लेना चाहते। बीमारी बढ़ रही है और ऐसे में हमारे घर में किसी को हो गई तो क्या करेंगे।"

पूजा के पास भी कोई तर्क नहीं बचता था। इस बीमारी से बचने का एकमात्र यही तो तरीका था सोशल डिस्टेंस ।

ओनलाइन ट्यूशन पढ़ाने का मन ही टूट गया था घर में होती रोज-रोज की किच-किच के कारण। उसके लिए उसे एक निश्चित समय देना होता जो कि संभव ही नहीं था उसके लिए। घर में बच्चों को पढ़ाने के साथ साथ बाकी काम और मेहमानों की खातिर दारी सब संभाल लिया करतीं थीं। पर ओनलाइन ट्युशन पढ़ाते समय तो वो ऐसा नहीं कर सकती थी। फिर उसका बैंक अकाउंट भी तो नहीं था। मेहनत भी करें घर में क्लेश भी हो रोज सुबह शाम उसे पसंद नहीं था।

एक दिन जब उसके ट्युशन के दो बच्चों के पापा आए पिछले महीने की फीस देने और बच्चों को कब से भेजें पूछने के लिए तब उसकी बुजुर्ग सांस ने जो हरकत की वो शर्म से अपनी  गर्दन नहीं उठा पाई। जब उसकी सास धक्के मारकर उन बच्चो के साथ उनके पिता को भी धकेलते हुए गेट बंद करते हुए कहा,"यह घर मेरा है मेरी मर्जी मैं किसको आने दूं और किसको नहीं। मैदान जो आज के बाद मेरी इजाजत के बिना तूने किसी भी भारी आदमी को अंदर आने दिया कोई ट्यूशन मिशन पढ़ने की जरूरत नहीं है घर में रहो और कम करो यह लोग बीमारी लेकर आते हैं कल को तेरे बच्चे बीमार पड़ जाएंगे तो कोई आएगा देखने के लिए नहीं चाहिए हमें तेरे पैसे और कितना पैसा चाहिए तुझको। पैसों के लिए ही तूं इन्हें बुलाती है तो मुझ से मांग लेना अपनी जेबखर्च।" 

तब हौले से पूजा बोली थी, "कोई काम कहां रुका है मांँजी। हमारे घर तो पहले से भी ज्यादा लोगों का आना-जाना बढ़ गया है। फिर अभी यह मंदिर बनाने का काम भी तो चल रहा है। बीमारी तो इन रेजा मजदूर मिस्त्री के जरिए भी घर में प्रवेश कर सकती है।"
कितना रोई थी वो उस दिन क्योंकि एक दिन पहले ही तो उसके मां ने यही कहा था कि अब मायके वाले घर पर तुम्हारा कोई अधिकार नहीं है। मैंने वो घर तुम्हारे भाई के नाम कर दिया क्योंकि असली वारिस तो लड़के ही होते हैं।अब उसकी मर्जी वो उस घर का जो करें अपने बेटे बहू पोते पोती के नाम करें या बेचे, तुम्हें उससे कोई मतलब नहीं होना चाहिए। हमें कौन सा मायके वाले घर में कोई हिस्सा या एक पैसा भी मिला।"
यहां हिस्सा या पैसे इसके बारे में तो कभी पूजा ने सोचा ही नहीं था उसे सिर्फ इस बात की तकलीफ़ हुई थी कि उसे पड़ोसियों से पता चला था कि उसका वो घर जिसमें उसका बचपन बीता, जिसमें उसने किशोरावस्था की अठखेलियां और फिर अपने यौवनकाल के कुछ वर्ष व्यतीत किए और हजारों सपने उसी घर में उसने देखे। उस घर को सजाने संवारने में लगी रहती थी।एक बार बता तो देते उसे कि वो घर बेच रहें हैं।
आज जब सासू मां ने भी यही कहा यह घर तेरा नहीं मेरा है तू अपनी मर्जी बिल्कुल नहीं चला सकती।तेरे ट्युशन के बच्चे मेरे घर पढ़ने नहीं आएंगे।
बहुत रोई थी उसकी अंतरात्मा और कितने ही सवाल कर डाले थे उसने उन आंसुओं से।
उसी रात उसने अपनी डायरी के पन्नों पीले पन्नों में काले पेन से एक कविता लिखी..
क्रमशः
कविता झा'काव्य'अविका
# लेखनी
# लेखनी कहानीकार प्रतियोगिता 

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1 Comments

madhura

06-Sep-2023 05:23 PM

Fantastic story

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